सीखने का कुशल तरीका -
व्यक्ति और समूह दोनों महत्वपूर्ण हैं, जिस काम को सीखने के लिए एक व्यक्ति को अधिक समय की आवश्यकता होती है, वे सामूहिक रूप से उसी काम को जल्दी से करते हैं, इसलिए यह उचित है कि व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार काम करे। किसी समस्या तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका व्यक्तिगत और सामूहिक तरीकों के संयोजन का उपयोग करना है।
सीखने का अर्थ व परिभाषा –
सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है जो तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी स्थिति के साथ अंतःक्रिया करता है। चलो हाथ में एक आम लेकर चलते हैं। बंदर भूखा लग रहा है और आदमी को देख रहा है। वह हमारे हाथ से आम छीन लेता है। बंदर आम को मुंह खोलकर देख रहा है, शायद इसलिए कि वह भूखा है। लेकिन वह प्रतिक्रिया सहज होती है, कुछ ऐसी नहीं जो आप सीखते हैं।
अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ -
प्रभावी ढंग से सीखने के कई तरीके हैं, और जो एक व्यक्ति के लिए काम करता है वह दूसरे के लिए काम नहीं कर सकता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि आपके लिए सबसे अच्छा क्या काम करता है और इसके साथ रहना है।
सीखने की प्रभावशाली विधियां निम्नलिखित है-
1. करके सीखना | Learning by doing
2. अनुकरण द्वारा सीखना | Learning by imitation
3. निरीक्षण करके सीखना | Learning by observation
4. परीक्षण करके सीखना | Learning by experimentation
5. पूर्ण एवं आंशिक विधि से सीखना | Learning by whole and Part method
6. अविराम एवं विराम विधि | Learning by massed and spaced method
7. सामूहिक विधियों से सीखना | Learning by group method
7.1 विचार विमर्श विधि | Discussion method
7.2 सम्मेलन व विचार गोष्ठी विधि | Conference and seminar method
7.3 कार्यशाला विधि | Workshop method
7.4 परियोजना विधि | Project method
7.5 खेल विधि | Play way method
1. करके सीखना | Learning By Doing -
सीखने का सबसे प्रभावी तरीका करना है। सीखने की प्रक्रिया में बच्चे स्वयं कार्य करके सीखते हैं, साथ ही अपने लक्ष्य निर्धारित करते हैं, स्वयं योजना बनाते हैं और इस योजना को पूरा करने के लिए इसे विभिन्न तरीकों से करने का प्रयास करते हैं। चीजों को खुद करने से हम अपने बारे में और अपनी कमजोरियों के बारे में जान सकते हैं।हम यह भी मान सकते हैं कि कुछ चीजों को ठीक करने की जरूरत है, लेकिन हम खुद ऐसा करने की कोशिश नहीं करते हैं।
किसी भी क्रिया को अकेले करने से इस क्रिया का प्रभाव सीधे मानव मन पर पड़ता है, जिससे बच्चा या व्यक्ति इस विषय को लंबे समय तक याद रख सकता है। प्रत्येक व्यक्ति सबसे अच्छा करके सीखता है।
उदाहरण – स्कूल में कोई भी कार्यक्रम या साहित्यिक या सांस्कृतिक प्रोग्राम होता है तो शिक्षक बालक को उन कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए कहता है ताकि बालक स्वयं से करके जो भी कमी हो या जो भी बाधाएं हैं उन्हें समझ सके और आने वाले समय में दुबारा वही गलती ना करें इसलिए स्कूल या कॉलेजों में बालकों को किसी भी प्रोग्राम के लिए आगे लाया जाता है।
2. अनुकरण द्वारा सीखना | Learning By Imitation -
अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया जीवन में बहुत पहले से ही शुरू हो जाती है। स्कूल में बच्चे अपने शिक्षकों के कार्यों की नकल करके सीखते हैं। इस पद्धति में शिक्षक छात्रों के लिए एक रोल मॉडल है। मनोवैज्ञानिक हाग्गार्ट के अनुकरण द्वारा सीखने के सिद्धांत से स्पष्ट है कि अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाता है।
उदाहरण – बालक को पहाड़ा याद कराने के लिए शिक्षक पहले पहाड़ा पढ़ते है फिर बच्चे या बालक शिक्षक के पीछे-पीछे उन पहाड़ा का अनुकरण करते हैं या प्री प्राइमरी कक्षाओं में बालक के कॉपी में शिक्षक वर्ण लिखते हैं और बच्चे उन्हें देखकर उसी रूप में लिखते हैं इसी को अनुकरण कहा जाता है।
3. निरीक्षण करके सीखना | Learning By Observation –
बच्चे अपने द्वारा देखी जाने वाली चीजों के बारे में जल्दी और स्थायी रूप से सीखने में सक्षम होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे एक साथ स्पर्श कर रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं और अपनी इंद्रियों का उपयोग कर रहे हैं, इसलिए वे उनमें से एक से अधिक का उपयोग कर रहे हैं। वस्तु को देखने का अनुभव उनकी स्मृति में संग्रहीत होने की एक स्पष्ट छवि के परिणामस्वरूप हुआ। अवलोकन विधि के सफल होने के लिए, शिक्षक को आगे की योजना बनानी चाहिए और एक स्थान चुनना चाहिए जहाँ वह बच्चों को ले जाएगा। यह विधि विद्यार्थी की सीखने की रुचि को जीवित रखती है। सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत भूगोल पढ़ाते समय यह विधि सहायक होती है, जिससे विद्यार्थी इसे आसानी से सीख सके।
उदाहरण – फिजिक्सस (Physics) , केमिस्ट्री (Chemistry) या E.V.S. जैसे विषयों में प्रैक्टिकल कराया जाता है तथा बच्चों को समय-समय पर भ्रमण के लिए ले जाया जाता है इतिहास या भूगोल के विषय पढ़ने वालों के लिए समय-समय पर निरीक्षण के लिए ले जाया जाता है ताकि वे उन्हें देखकर समझ सके और उनसे सीख सकें।
4. परीक्षण करके सीखना | Learning By Experimentation –
शिक्षण का यह तरीका छात्रों की सीखने में रुचि को उच्च रखता है। सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम के तहत बच्चों को भूगोल पढ़ाते समय इस पद्धति का सबसे अच्छा उपयोग किया जाता है। उनके लिए इससे सीखना आसान होगा। जैसे -बच्चे किताब में गिनती को पढ़ते हैं तो प्रथम दृष्टि में उसका कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं होता, परन्तु व्यवहारिक जगत में जब बच्चे स्वयं इसका प्रयोग करते हैं, देखते हैं, तो उसका अधिगम स्थायी रूप ले जेता है। इस विधि को विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन एवं नैतिक शिक्षा आदि में प्रयोग किया जा सकता है। इस विधि के माध्यम से बच्चों में आत्मनिर्भरता का विकास होता है क्योंकि इस परीक्षण में वे स्वयं प्रयास करते हैं।
उदाहरण –विज्ञान विषयों के बालकों को साइंस लैब में लेकर विभिन्न प्रकार के परीक्षण कराया जाता है तथा उन से बनने वाले रासायनिक पदार्थों का परीक्षण किया जाता है।
5. पूर्ण एवं आंशिक विधि से सीखना | Learning By Whole And Part Method ) –
किसी भी विषय को सीखने के दो तरीके हैं: पूर्ण विधि से और आंशिक विधि से। यदि हम किसी विषय का कोई पाठ या अध्याय एक सांस में पढ़ लें तो यह संपूर्ण विधि कहलाती है। लेकिन अगर हम एक ही पाठ को कई भागों या छोटे भागों में पढ़ते हैं, तो इसे आंशिक शिक्षा कहा जाता है।आंशिक विधि से हम पहले एक भाग सीखते या पढ़ते हैं और फिर दूसरे भाग को पढ़ते या सीखते हैं, यह सबसे उपयोगी विधि है क्योंकि इसे पढ़ना और सीखना बहुत आसान है लेकिन केवल एक बार पढ़ना बहुत मुश्किल है या पढ़कर सीखना बहुत मुश्किल है l
किसी विषय को पढ़ाने के तरीके शिक्षार्थियों की उम्र, विषय की लंबाई, उनके पास कितना अभ्यास है, और उनकी क्षमता के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। उच्च कक्षाओं के लिए, उच्च बुद्धि वाले लोगों के लिए लघु विषय वस्तु के लिए पूर्ण विधि अधिक उपयोगी है, लेकिन बच्चों के लिए कम बुद्धि वाले लोगों के लिए लंबी विषय वस्तु और आंशिक विधि सीखना बहुत सुविधाजनक है।
उदाहरण – छात्रों को खेल और खेल के माध्यम से संख्या सीखने का अवसर दिया जाता है। बच्चा मैदान बनाने में शामिल कार्य करके मापन के बारे में सीखता है। बच्चा क्रिकेट में रनों और ओवरों की संख्या से गिनती करना सीखता है।
6. अविराम एवं विराम विधि | Learning By Massed And Spaced Method) –
किसी भी टास्क को सीखने के लिए हम उसे लगातार करने की कोशिश करते हैं, फिर बीच-बीच में कुछ ब्रेक लेते हैं और फिर टास्क को थोड़ा-थोड़ा करके सीखते हैं। विराम विधि यह नियंत्रित करने का एक तरीका है कि आपकी श्वास कितनी तेज़ है।अभिराम विधि की अपेक्षा विराम विधि अधिक उपयोगी है क्योंकि विराम विधि से सीखने से थकान नहीं होती, बच्चे की रुचि बनी रहती है, अध्ययन में चाहे कोई भी विराम हो या विराम, यह बारा की स्मृति को धुंधला करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। वह चला गए।
नतीजतन, उनका दिमाग तेजी से काम करना शुरू कर देता है और वे और भी अधिक प्रभावी ढंग से सीखने में सक्षम होते हैं। अगर आप कुछ जल्दी और आसानी से सीख सकते हैं, तो आपको उसके लिए इरम के तरीके का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
उदाहरण – सम्मेलन, सम्मेलन और मोटर सभी प्रकार के आयोजन हैं जो लोगों को जानकारी इकट्ठा करने और साझा करने की अनुमति देते हैं।
7. सामूहिक विधियों से सीखना Learning By Group Method –
समूह सीखना अक्सर व्यक्तिगत सीखने की तुलना में अधिक प्रभावी होता है क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति की स्मृति या मस्तिष्क को कार्य में शामिल करने की अनुमति देता है, जो उनमें लोगों की विभिन्न धारणाओं को जगाने में मदद करता है और व्यक्तिगत रूप से केवल एक व्यक्ति तक सीमित है।
इस तथ्य के कारण कि उनके मन में केवल आत्म-प्रभाव होता है, वे हमेशा स्वयं से प्रेरित और प्रेरित होते हैं। सामूहिक तरीके आम तौर पर व्यक्तिगत तरीकों की तुलना में अधिक प्रभावी होते हैं।
प्रमुख सामूहिक विधियां निम्न प्रकार से हैं-
i. विचार विमर्श विधि | Discussion Method –
चर्चा सीखने का एक तरीका है जिसमें छात्र एक दूसरे के साथ चर्चा करके किसी पाठ या समस्या के बारे में निष्कर्ष पर आते हैं। चर्चा पद्धति वाद-विवाद पद्धति से भिन्न है जिसमें छात्र अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए मूल स्रोतों की तलाश कर रहे हैं वाद-विवाद में सत्य को खोजने की बजाय वह उस विषय या समस्या पर बहस करके अपना पक्ष मजबूत करने का प्रयास करता है। छात्र चर्चा में अधिक व्यस्त रहते हैं, और शिक्षक भी आवश्यकतानुसार निर्देश प्रदान करने में अधिक निर्देशित होते हैं।
ii. सम्मेलन व विचार गोष्ठी विधि | Conference And Seminar Method –
सम्मेलन और संगोष्ठी दो प्रकार की चर्चा है जिसमें समूह के सदस्य तार्किक और सूचनात्मक तरीके से विचारों के बारे में एक दूसरे से बात करते हैं। सम्मेलनों और संगोष्ठियों में, समूह के सभी लोगों को अपने विचार साझा करने का मौका मिलता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, समूह के सदस्य एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे में सही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। सम्मेलन और संगोष्ठी में छात्रों को अधिक सोचने और समझने का अवसर मिलता है, जो उनके ज्ञान को और अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाता है। यह रुचि बढ़ती रहती है और इसके माध्यम से विद्या और ज्ञान स्थायी रहता है।
iii. कार्यशाला विधि | Workshop Method -
यह एक सीखने की विधि है जिसमें छात्र विचारों पर चर्चा करते हैं और कुछ नया बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं। कार्यशाला समूह के रूप में चर्चा करके किसी समस्या या विषय का समाधान खोजने का प्रयास करती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि समस्या का सैद्धांतिक पक्ष महत्वपूर्ण है, और इसलिए इसे हल किया जा सकता है। समूह कार्य तब किया जाता है जब प्रतिभागी इसमें शामिल होते हैं। कार्यशाला पद्धति में, छात्रों को अपने दम पर काम करने का अवसर मिलता है। ऐसे कार्यों पर काम करके जो उनकी रुचि रखते हैं और जो उन्हें किसी समस्या को हल करने में मदद करते हैं, छात्र अधिक सीखते हैं।
iv. परियोजना विधि | Project Method –
परियोजना विधि एक अनुभवात्मक विधि है क्योंकि इस पद्धति में छात्र को एक समस्या के साथ प्रस्तुत किया जाता है और उस कार्य या समस्या का समाधान खोजने के लिए जानकारी एकत्र की जाती है। छात्र विषय से संबंधित सामग्री का अध्ययन करते हैं, निष्कर्ष निकालने के लिए डेटा एकत्र करते हैं और उसका विश्लेषण करते हैं। चूंकि यह पद्धति एक टीम के रूप में एक साथ काम करती है, छात्र में सहयोग, सहानुभूति और सामाजिक कौशल विकसित होते हैं, और इस पद्धति के माध्यम से सीखा ज्ञान सिर्फ अस्थायी से अधिक है।
v. खेल विधि | Play Way Method –
बच्चे की रुचि सभी खेलों में होती है या उनके प्रति स्वाभाविक झुकाव होता है, इसलिए वह खेल-खेलकर जटिल समस्याओं का समाधान शीघ्रता से करता है। सीखने में उनकी त्वरित रुचि और उनका स्थायी प्रभाव इसके कारण हैं।
सीखने की विशेषताएँ
(CHARACTERISTICS OF LEARNING) -
1. सीखना-सम्पूर्ण जीवन चलाता है
2. सीखना-परिवर्तन है
3. सीखना-सार्वभौमिक है
4. सीखना-विकास है
5. सीखना-अनुकूलन है
6. सीखना-नया कार्य करना है
7. सीखना-अनुभवों का संगठन है
8. सीखना-उद्देश्यपूर्ण है
9. सीखना-विवेकपूर्ण है
10. सीखना-सक्रिय है
11. सीखना-व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों है
12. सीखना-वातावरण की उपज है
13. सीखना-खोज करना है
1. सीखना-सम्पूर्ण जीवन चलाता है -
सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक निरंतर सीखता रहता है।
2. सीखना-परिवर्तन है -
एक व्यक्ति अपने वातावरण या स्थिति में बदलाव के जवाब में अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि को बदल देता है। अपने और दूसरों के अनुभवों से सीखकर, वह अपने कौशल में सुधार करने में सक्षम था।
3. सीखना-सार्वभौमिक है –
सीखने का गुण केवल मनुष्यों में ही नहीं पाया जाता है। पृथ्वी पर लगभग सभी जीव, जानवरों से लेकर कीड़ों तक, एलियंस का सामना करने पर शोर मचाते हैं।
4. सीखना-विकास है –
प्रतिदिन कर्म करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। इससे उसका शारीरिक और मानसिक विकास सुचारू रूप से चलता है। इस सीखने की विधि को पेस्टलोज़ी द्वारा एक पेड़ और फ्रोबेल द्वारा एक बगीचे के उदाहरण के साथ समझाया गया है।
5. सीखना-अनुकूलन है –
पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुकूल होने के लिए सीखना आवश्यक है। सीखने से ही कोई नई स्थिति के अनुकूल हो सकता है। जब वह अपने व्यवहार को उनके अनुसार ढाल लेता है, तभी वह कुछ सीख सकता है।
6. सीखना-नया कार्य करना है –
वुडवर्थ के अनुसार, सीखना कुछ नया करने की प्रक्रिया है, लेकिन यह एक शर्त के साथ आता है: आपको प्रयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीखना नया कार्य तभी करना है जब कार्य फिर से किया जाता है और अन्य कार्यों में प्रकट होता है।
7. सीखना-अनुभवों का संगठन है –
सीखना न तो नए अनुभवों को प्राप्त करना है और न ही पुराने अनुभवों को समेटना है, बल्कि नए और पुराने अनुभवों को व्यवस्थित करना है। जैसे-जैसे एक व्यक्ति सीखता और बढ़ता है, वह अपने अनुभवों को इस तरह व्यवस्थित करना शुरू कर देता है जो उसकी सबसे अच्छी सेवा करता है।
8. सीखना-उद्देश्यपूर्ण है –
सीखना उद्देश्यपूर्ण है। उद्देश्य जितना मजबूत होगा, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र होगी। जब तक कोई विशिष्ट उद्देश्य प्राप्त न हो, तब तक सीखना कठिन है। मैर्केल का मानना है कि अगर छात्रों के मन में पढ़ाई के दौरान कोई विशिष्ट लक्ष्य नहीं होगा, तो वे प्रभावी ढंग से नहीं सीख पाएंगे।
9. सीखना-विवेकपूर्ण है –
मर्सेल (Mursell) का तर्क है कि सीखना एक तर्कसंगत कार्य है, यांत्रिक कार्य नहीं। वही बात जल्दी और आसानी से सीखी जा सकती है, लेकिन बुद्धि या विवेक हमेशा जरूरी है। बिना सोचे समझे कुछ भी सीखने में सफलता नहीं मिलती।
10. सीखना-सक्रिय है –
सक्रिय सीखना वास्तविक सीखना है। सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल होने से ही बच्चा सीख सकता है। यही कारण है कि शिक्षण के प्रगतिशील तरीके जैसे डाल्टन प्लान, प्रोजेक्ट मेथड आदि। अपना ध्यान बच्चे की गतिविधियों पर रखें।
11. सीखना-व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों है –
सीखना न केवल एक व्यक्तिगत गतिविधि है, बल्कि यह सामूहिक प्रयास से अधिक है। योकम और सिम्पसन के अनुसार, सीखना सामाजिक है क्योंकि बिना किसी सामाजिक संपर्क के किसी व्यक्ति के लिए सीखना असंभव है।
12. सीखना-वातावरण की उपज है –
सीखना नीले रंग से नहीं होता है, बल्कि हमेशा उस वातावरण की प्रतिक्रिया के रूप में होता है जिसमें कोई रहता है। एक बच्चा जिस तरह से अपने पर्यावरण से जुड़ा होता है, वह उन चीजों को निर्धारित करता है जो वह सीखता है। यही कारण है कि स्कूलों के लिए एक ऐसा वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है जो सीखने के लिए अनुकूल हो और सकारात्मक विकास को बढ़ावा दे।
13. सीखना-खोज करना है –
वास्तविक शिक्षा कुछ नया खोज रही है। इस प्रकार के अधिगम में व्यक्ति विभिन्न प्रयास करके परिणाम प्राप्त करता है। मैर्केल का मानना है कि सीखना वह प्रक्रिया है जिसे हम जानना चाहते हैं और इसके बारे में जागरूक होना है।
प्रभावकारी सीखने के घटक एवं अवरोधक (Effective Learning of Phenomenon and Barriers ) –
जिस स्थान पर अधिगम होता है, वह शिक्षा और शिक्षण की प्रक्रिया में बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा के बिना शिक्षण अधूरा है।
सीखने के घटक –
मानव व्यवहार के वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन करते हुए इस बात पर जोर दिया गया है कि व्यवहार परिवर्तन सभी अनुभव या व्यवहार में होता है। परिवर्तन कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे सहज क्रियाओं से सीखा जा सकता है। कौशल अधिग्रहण नए व्यवहारों को सीखने की प्रक्रिया है, जैसे समय, लेखन, या कंप्यूटर कौशल। जितना अधिक सीखा जाता है, ये व्यवहार जितने अधिक त्रुटिहीन होते हैं, उतना ही प्रभावी ढंग से सीखने पर विचार किया जाता है।
हमने पाया कि सीखने को परिभाषित करना बहुत कठिन है, और मानव स्वभाव के बारे में कोई एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत दृष्टिकोण नहीं है। इससे यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि प्रभावी शिक्षण क्या है। सीखना मानव संस्कृति या क्षमता में परिवर्तन है जिसे हासिल किया जा सकता है और विकास की प्रक्रिया के अधीन नहीं है।
सीखने को प्रभावित करने वाले कारक या दशाएँ
(FACTORS OR CONDITIONS INFLUENCING LEARNING) –
1. विषय-सामग्री का स्वरूप (Nature of Subject-matter)
2. बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य(Physical and Mental Health of Children)
3. परिपक्वता (Maturation)
4. सीखने का समय व थकान (Time of Learning and Fatigue)
5. सीखने की इच्छा (Will to Learn)
6. प्रेरणा (Motivation)
7. अध्यापक व सीखने की प्रक्रिया (Teacher and Learning Process)
8. सीखने का उचित वातावरण (Favourable Learning Atmosphere)
9. सम्पूर्ण परिस्थिति (Total Situation)
1. विषय-सामग्री का स्वरूप | Nature of Subject-Matter –
सीखने की प्रक्रिया का सीखी गई सामग्री पर सीधा प्रभाव पड़ता है। सरल जानकारी अधिक जटिल या भ्रमित करने वाली जानकारी की तुलना में अधिक तेज़ी से और आसानी से सीखी जाती है। सरल से कठिन तक का सिद्धांत छात्रों को अधिक बुनियादी जानकारी से अधिक जटिल जानकारी की ओर ले जाकर अधिक आसानी से सीखने में मदद करता है।
2. बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य | Physical and Mental Health of Children -
जो छात्र शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, वे सीखने और जल्दी सीखने में रुचि रखते हैं। जो छात्र बीमार हैं या शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग हैं, उनके लिए सीखने पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल होता है। नतीजतन, वे समय के साथ कम और कम सीखने में सक्षम होते हैं।
3. परिपक्वता Maturation –
सभी छात्र नए पाठ सीखने के लिए तैयार और उत्सुक हैं, चाहे उनकी उम्र या शारीरिक या मानसिक परिपक्वता कुछ भी हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें सीखना आसान लगता है। यदि छात्र शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, तो उनका समय और ऊर्जा सीखने के लिए बर्बाद हो जाती है। कोलेसनिक के अनुसार- परिपक्वता और सीखना अलग-अलग प्रक्रियाएं नहीं हैं, लेकिन वे परस्पर जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
4. सीखने का समय व थकान | Time of Learning and Fatigue –
स्कूल के समय का आगमन सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, जब छात्र उत्साहित होते हैं, तो उनके सीखने की संभावना अधिक होती है। रुचि रखने वालों के लिए उन्हें सीखना आसान है। जैसे-जैसे पढ़ाने के घंटे बीतते हैं, वे थकान महसूस करने लगते हैं। इससे सीखने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
5. सीखने की इच्छा | Will to Learn –
कठिन परिस्थितियों में भी विद्यार्थी वही सीख पाते हैं जो वे चाहते हैं। शिक्षक का मुख्य कार्य छात्रों को मजबूत इच्छाशक्ति कौशल विकसित करने में मदद करना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, उन्हें उनकी रुचि और जिज्ञासा को संलग्न करना चाहिए।
6. प्रेरणा | Motivation –
सीखने में प्रेरणा सबसे महत्वपूर्ण कारक है। बच्चों को नई चीजें सीखने के लिए प्रेरित करना जरूरी है। यदि शिक्षक चाहता है कि उसके छात्र एक नया पाठ सीखें, तो उसे ऐसे तरीकों का उपयोग करना चाहिए जो उन्हें प्रेरित करें, जैसे प्रशंसा, प्रोत्साहन, आत्मचिंतन, आदि। स्टीफंस का मानना है कि प्रेरणा सबसे महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है जो शिक्षकों के पास है।
7. सीखने की प्रक्रिया | Learning Process –
छात्रों को सीखने में मदद करने में शिक्षक की भूमिका आवश्यक है। उनके कार्यों, व्यवहार और व्यक्तित्व का सीधा प्रभाव इस बात पर पड़ता है कि छात्र कितनी अच्छी तरह सीखते हैं। उनका ज्ञान और शिक्षण विधियां भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण हैं। इन मामलों में शिक्षक का स्तर जितना ऊँचा होता है, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तेज़ और आसान होती है।
8. सीखने का उचित वातावरण Favourable Learning Atmosphere –
जिस वातावरण में छात्र सीखता है उसका उसके सीखने पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। कक्षा शांत होनी चाहिए ताकि छात्र ध्यान केंद्रित कर सकें। लगातार शोर छात्रों के लिए सीखने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल बना देता है। यदि कक्षा में छात्र के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है और पर्याप्त हवा और प्रकाश नहीं है, तो छात्र जल्द ही थका हुआ महसूस करने लगेगा। परिणामत, वे सीखने में रुचि खो देते हैं। कक्षा में मनोवैज्ञानिक वातावरण सीखने की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। यदि छात्रों में एक दूसरे के साथ सहयोग और सहानुभूति की भावना हो तो सीखने की प्रक्रिया जारी रहती है।
9. सम्पूर्ण परिस्थिति Total Situation –
बच्चे के सीखने को प्रभावित करने वाले कारक उसे व्यक्तिगत रूप से नहीं बल्कि सामूहिक रूप से प्रभावित करते हैं। इसलिए स्कूल में पढ़ाई का पूरा माहौल होना जरूरी है। स्कूल बच्चे के बाहरी जीवन और समुदाय के सामान्य जीवन के अनुरूप होना चाहिए। रायबर्न के अनुसार, स्कूल जाते समय एक बच्चा जिस स्थिति में खुद को पाता है, उसका उसके विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। जितना अधिक आप जीवन के संपर्क में होंगे, उतना ही आप सीखेंगे और आप उतने ही सफल होंगे।
निष्कर्ष –
व्यक्ति और समूह दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, जिस कार्य को सीखने में व्यक्ति को अधिक समय लगता है, वही कार्य समूह में बहुत शीघ्रता से करते हैं, इसलिए व्यक्ति के लिए उपयुक्त है कि वह अपनी क्षमता या कार्य के अनुसार समूह या व्यक्तिगत विधियों का उपयोग करे। हर कोई करने से, अनुकरण करके और देखकर सबसे अच्छा सीखता है। यह वह तरीका है जिससे मनुष्य विशिष्ट हैं।
By Chanchal Sailani | June 17th, 2022 | Editor: Gurugrah_Blogs
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